बौद्ध धम्म में प्रत्येक माह में चार दिन अर्थात दोनों पक्ष की अष्टमियां, अमावस्या एवं पूर्णिमा को अष्टशील पालन करने का विधान है, जिसे ‘उपोसथ व्रत’
कहते
हैं
| वैशाखी
पूर्णिमा,
अषॉढी
पूर्णिमा,
अश्विन
पूर्णिमा
एवं
माघी
पूर्णिमा,
ये
चार
महापर्व
हैं
| ‘वर्मा’ देश में, ज्येष्ठ पूर्णिमा को भी पर्व मनाया जाता है, इस दिन तथागत ने कपिलवस्तु में ‘महासमय सुत्त’ का उपदेश दिया था|
इसके
अतिरिक्त
और
भी
अन्य
पर्व
हैं
| इन्ही
पर्व
एवं
उपोसथ
के
दिन
त्रिरत्न
वन्दना,
पंचशील
पालन, अष्टशील पालन, दान व विपस्सना, ध्यान भावना करना पुण्य होता है |
1) वैशाखी
पूर्णिमा (बुद्ध पूर्णिमा) :- तथागत के सम्बन्ध में निम्न तीन ऐतिहासिक घटनाएं घटित होने के कारण, इस महापर्व को बौद्ध जगत में सबसे अधिक महत्त्व है |
(A)सिद्धार्थ गौतम का जन्म 623 ई.पूर्व (563 ई.पूर्व ) इसी दिन लुम्बिनी वन (अब नेपाल देश में) में हुआ था |
(B)उरुवेला में निरंजना नदी के किनारे एक पीपल के वृक्ष, जिसे ‘बोधि वृक्ष’ कहते हैं, के नीचे बैठकर बुद्धत्व को प्राप्त कर, वे पैंतीस वर्ष की अवस्था में इसी दिन बुद्ध हुए|
(A)सिद्धार्थ गौतम का जन्म 623 ई.पूर्व (563 ई.पूर्व ) इसी दिन लुम्बिनी वन (अब नेपाल देश में) में हुआ था |
(B)उरुवेला में निरंजना नदी के किनारे एक पीपल के वृक्ष, जिसे ‘बोधि वृक्ष’ कहते हैं, के नीचे बैठकर बुद्धत्व को प्राप्त कर, वे पैंतीस वर्ष की अवस्था में इसी दिन बुद्ध हुए|
(C)
इसी
दिन
मल्लों
की
राजधानी
कुशीनारा
(कुशीनगर)
के
शालवन
में,
दो
विशाल
वृक्षों
के
मध्य
“सिंह शैय्या”
पर
लेटे
हुए
543 ई.पूर्व (483
ई.पू.)
गौतम
बुद्ध
“महापरिनिर्वाण” को प्राप्त हुए|
2) अषॉढी
पूर्णिमा (महाभिनिष्क्रमण) :- सिद्धार्थ गौतम ने उन्तीस वर्ष की अवस्था में इसी दिन ‘महाभिनिष्क्रमण’
किया
और
छह
वर्ष
पश्चात
इसी दिन ‘इसिपत्तन’
म्रग्दायवन’ सारनाथ, में पांच भिक्षुओं को प्रथम धम्मोपदेश कर के ‘धम्मचक्क प्रवर्तन’
किया
जो
“
धम्म
चक्र
प्रवर्तन
सूत्र” के रूप में उपलब्ध है | ऐसी भी मान्यता है कि इसी दिन महामाया की कोख में ’बोधिसत्व’
ने
प्रवेश
किया
था
और
अषॉढी
पूर्णिमा
को
ही
बौद्ध
भिक्षु
वर्षावास
हेतु
अर्थात
तीन
माह
एक
ही
स्थान
पर
रहने
का
संकल्प
लेते
हैं,
जहाँ
वे
विपस्सना
भावना
एवं
चिन्तन
करते
हैं
|
3) अश्विन
पूर्णिमा (प्रावरण पूर्णिमा):- भिक्षु संघ वर्षावास समाप्त
कर किसी एक बुद्ध विहार पर एकत्रित होकर, गत वर्ष की चर्या पर विश्लेषण कर, अपनी त्रुटियों पर पश्चताप करके उनकी पुनरावृत्ति न होने देने का संकल्प लेते हैं एवं आगत वर्ष की चर्या निर्धारित करते हैं |
इसे
‘प्रावरण’ कहते हैं, ऐसी भी मान्यता है कि एक बार बुद्ध ‘तावतिन्स-देवलोक’
(अज्ञातवास)
में
तीन
माह
प्रवास
कर
’संकिसा’ फर्रुखाबाद जिले में इसी दिन प्रकट हुए|
4) माघीपूर्णिमा (आयु संस्कार
विसर्जन घोषणा पूर्णिमा) :- गौतम बुद्ध ने वैशाली के ‘सारन्दर चैत्य’
में
आयु
संस्कार
का
त्याग
करने
की
घोषणा
की
थी,
कि
आज
के
तीन
माह
पश्चाततथागत का परिनिर्वाण होगा |
5) अशोक
विजय दशमी (धम्म
विजय एवं दीक्षा
दिवस)
:- इस पर्व के दो ऐतिहासिक महत्त्व हैं |
(A)
इतिहास
साक्षी
है
कि,
कलिंग
युद्धके
भीषण
नरसंहार
को
देखकर
सम्राट
अशोक
को
अत्यंत
ग्लानि
हुयी
और
वे
द्रवित
हो
उठे
| समकालीन
बौद्ध
विद्वान
भदन्त
‘मोगालिपुत्त तिस्स’ महाथेरो के धम्मोपदेश से प्रभावित होकर, सम्राट अशोक ने बिना शस्त्र धारण किये ही करुणा-मैत्री के बल पर, धम्मविजय करने का महान संकल्प किया और तभी से प्रत्येक वर्ष सम्राट अशोक के सम्पूर्ण राज्य में “धम्म विजय ” के रूप में राजकीय स्तर पर मनाया जाने लगा | इसी से इस पर्व का नाम “अशोक विजयदशमी”
ही
पड़
गया
|
(B)
इस
ऐतिहासिक
पर्व
के
दिन
ही
14
अक्टूबर
1956
को
बोधिसत्व
भारत
रत्न
बाबा
साहेब
डॉ.
भीमराव
अम्बेडकर
ने
नागपुर
में
“दीक्षा
भूमि” में, पूज्य भदन्त चंद्रमणि महाथेरा से बौद्ध धम्म की दीक्षा ग्रहण कर, दस लाख से भी अधिक अपने अनुयायियों को बौद्ध धम्म में दीक्षित करके महामानव बुद्ध के ढाई हजार वर्ष बाद पुनः “धम्म चक्क प्रवर्तन”
किया
|
6) 14 अप्रैल (बाबा साहेब
डॉ. अम्बेडकर जन्मदिवस ‘भीम
प्रकाश’) :-
बोधिसत्व
बाबा
साहेबसाहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर का जन्म, सूबेदार रामजीराव के घर, माता भीमाबाई कीकोख से ‘महू’ छावनी मध्यप्रदेश (14 अप्रैल 1891) को हुआ |
7) 6 दिसम्बर (परिनिर्वाण दिवस) :- बोधिसत्व बाबासाहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर, सन 1956 ई. में, 6 दिसम्बर को उषाबेला में अपने स्थान, 26 अलीपुर रोड, दिल्ली में परिनिर्वाण को प्राप्त हुए |
इसके अतिरिक्त निम्नलिखित विशेष स्मृति दिवस हैं :
1) अनागरिक
धम्मपाल जन्मदिन :- 17 दिसम्बर 1864 ई. को श्रीलंकामें बौद्ध धम्म को पुनर्जीवित करने वाले और भारत भूमि पर बौद्ध संस्कृति के पुनरुद्धारक धम्मपाल जी का जन्म हुआ था | उनका परिनिर्वाण 29 अप्रैल 1933 को सारनाथ में हुआ |
2) राहुल
सांक्र्त्यायन जन्मोत्सव ( 9 अप्रैल 1893) :- बौद्ध जगत के विख्यात विद्वान, पुरातत्वविद एवं प्रसिद्ध दार्शनिक, राहुल सांक्र्त्यायन जी का जन्म आजमगढ़ जिले के पन्दहा गाँव में हुआ था | उनका परिनिर्वाण 14 अप्रैल 1963 को हुआ |
उपासक
PHOOL SINGH BAUDDH